आज कुछ दर्द सा था
दिल में
कुछ यादें तिरोहित हो
उतरी हैं मन में
हर बार उन यादों के लिए
बंद रखती थी मै द्वार
पर आज खटखटा कर
सिसक रही थी वो याद
मैंने अपने दिल से
आँखों तक का रास्ता
बंद कर रखा था
आज आँसुओं का
सैलाब सा
ले आई है
मैंने कई बार
कड़क हो
समझाया था तुमको
मै नहीं चाहती हूँ तुम्हे ॥॥
क्यूंकि मुझे मेरी
मर्यादाएँ प्यारी थीं
मगर दिल तुम्हे
पुकारता रहा
बार-बार
और मैं
लड़कपन का
आकर्षण मान
होती रही तुमसे दूर
बहुत दूर
पर आज जब
सदा के लिए
दूर हो गए हो तुम
मैं चाहती हूँ
आ जाओ
एक बार
बस मैं कह सकूँ
तुमसे कि
तुम थे मेरा
पहला प्यार
वो गुलाबी फूलों
का गुच्छ
जो दे दिया था
तुमने
छेड़खानी में
वो सदा ही रहे
मेरी कॉपी में
अधेड़ावस्था
में हूँ अब मैं
पर न जाने क्यूँ
अब तक उन्हें
अपने से विलग
न कर सकी
कहो ये आकर्षण था
या अनापेक्षित प्यार ...
जो तुम्हारे सिवा
अब तक
किसी से ना हुआ॥
~ बोधमिता