शनिवार, 10 मई 2025

"माँ"


मै         सृजन           करती 

 

रचनात्मकता का स्वाद लेती 

 

  अधरों पर मधुरता रखती

 

   हँसती खिलती स्रष्टि से

 

   कांटे फूल अलग करती 

 

   लहू-लुहान   होती    हूँ

 

         फिर      भी

 

   मुस्कान मेरी रहती

 

  क्यूंकि मै हूँ सृजन कर्ता

 

    मै      हूँ     "माँ"

 

 

 

एक कतरा धूप

मैं बेसब्र इंतजार करती हूं 
उस धूप के कतरे का
जो हर रोज दोपहरी में
मेरे घर की मेज़ पर 
बैठ जाया करता है,

कभी मुलायम कभी तीखा
यह जो छोटा सा कतरा 
बैठा करता है मेरे पास  
मेरी जिंदगी के कई लम्हे 
अपने साथ समेट लेने को, 

करता है मुझसे बातें
अनवरत अनकही
कई चुप चाप सी 
ये लम्हा कभी शिकायती
कभी मासूम कभी ज़िद्दी
तो कभी शरारती होता है,

कभी कभी आने में 
नखरे किया करता 
कई बार बारिशों में 
बेशर्म नागे कर लेता
पर जाड़ों में आकर सदा 
सब्र ही दिया करता है,

मेरी मेज़ पर बैठा कतरा
निहारा करता है मेरे 
मन की सुंदरता को
और जगाया करता है
मेरे अंदर के सूर्य को!!

~बोधमिता

शुक्रवार, 9 मई 2025

दुआ..




थिरकती रहे तू सदा खुशियों से
मैं तेरी थिरकन पे कुर्बां जाऊँ
एक थिरकन मुस्कान की
थिरकी थी ओंठ पर तब
मेरी नन्ही परी !
जब पहली बार तुम्हे 
छुआ देखा जी भर कर..
फिर मैं मुसकाई  
जब जब तुम मुसकाई 
और निकली दुआ दिल से
थिरकती रहे तू सदा खुशियों से
मैं तेरी थिरकन पे कुर्बां जाऊँ
एक थिरकन मुस्कान की
थिरकी थी ओंठ पर तब
मेरी नन्ही परी !
जब पहली बार तुम्हे
देखा नन्हे कदमों से 
चलते हुए खिलखिला कर.... 
फिर मैं मुसकाई  
जब जब तुम इठलाई
और निकली दुआ दिल से
थिरकती रहे तू सदा खुशियों से
मैं तेरी थिरकन पे कुर्बां जाऊँ
एक थिरकन मुस्कान की
थिरकी थी ओंठ पर तब
मेरी नन्ही परी !
जब पहली बार तुम्हे
देखा रंगों में सराबोर.... 
फिर मैं मुसकाई  
जब जब तुम इतराई
और निकली दुआ दिल से
थिरकती रहे तू सदा खुशियों से
मैं तेरी हर थिरकन पे कुर्बां जाऊँ
ऐसी ही कई 
थिरकन मुस्कान की
थिरकी थी ओंठ पर तब
मेरी नन्ही परी !
जब जब मैने तुम्हे
देखा सपने बुनते हुए, 
आगे बढ़ते हुए,
मेरी खुशियों की दुआ करते हुए.... 
फिर मैं मुसकाई  
बस मुस्कुराती रही 
और मांगी दुआ रब से
थिरकती रहे तू सदा खुशियों से
मैं तेरी थिरकन पे कुर्बां जाऊँ।।
~बोधमिता