मंजरियाँ आज टूट कर
बिखर जाना चाहतीं हैं
तुम्हारे अंग प्रत्यंग में
समां जाना चाहती हैं
तुम कहीं भी जाओ
चाहे बासुरी बजाओ,
या गउए चराओ,
या नयना लड़ाओ
मन्जरी चले तेरे साथ
सुवासित होवे तेरे माथ
चाहे दे जगह चरणो में
या दे जगह हाथ
या गिरा दे किसी पाथ
'ओ' कान्हा मंजरी है तेरी
दे दे तू चाहे जो गति
~ बोधमिता ॥