शनिवार, 6 जून 2020

garv


आज रोने को व्याकुल

हो चला मन

ऐ अंतर्मन तेरी कसम


 खेल खिलौने रंग बिरंगे

चोकलेट आइस क्रीम रंग रंगीले

वस्त्रों का अम्बार लगा है

घर का हर कोना सजा हुआ है

फिर भी मन खरीदता फिरता

नाना वस्त्र 'औ' स्वाद चटखारे

बाजारों   में   रौनक   होती

 और जगमग कर उठता कोलाहल

मन  कहता  ये  भी  ले  चल

मन के भीतर हरपल हलचल 


एक छोटा बच्चा भूखा प्यासा

फटे चीथड़े वस्त्रों में

खड़ा हुआ ले भूखी आस

उदर अग्नि को शांत करने 

चला आ रहा पीछे पीछे

कई  धनाड्यों  से दुत्कार खा चुका

फिर भी बेबस भूखा बच्चा

आँखों में मोती ले कहता

भूखा हूँ   मै  आज सुबह से

मेरे  नहीं  है   माई  - बाबा

भूखा  हूँ  मैं  दे   दो   पैसा

खा लूँ एक समय कि रोटी... ..


 आज खोखला  हुआ दिखावा

बिखर गया एक सजा ह्रदय कक्ष

एक भूखे  बच्चे को खाना  

न खिला सका कोई गर्वीला मन  

झूठा आडम्बर ओढ़ता फिरता

मेरे देश का सुखी संपन्न वर्ग  


वर्गों में कट-बँट   गया है

 माँ के हर बच्चे का अंतस ...

                                       --bodhmita

आजाद - देश!



आजाद मेरे देश क्यों रोता खड़ा है तू 
संसाधनों से पूर्ण क्यों जख्मी पड़ा है तू 
दुनिया के बाजारों में क्या नीलाम हो गया 
संविधान की धाराओं में उलझा ही रह गया 
अभिव्यक्तियों की दौड़ में लाचार हो गया 
क्यों स्वतंत्रता के दौर में स्वच्छंद हो गया !
आजाद मेरे देश ...

रणबांकुरे के खून से सींचा गया था तू 
कीमत थी जान की तभी आजाद हुआ तू 
ना हिंदू- मुसलमां न कोई सिख इसाई 
हर कौम के बेटो ने अपनी जान लुटाई 
फिर कौम के ही नाम पर बंटता गया है तू 
क्यों धर्म के आकाओं से डरता रहा है तू 
आजाद मेरे देश ...

निर्भीक राष्ट्र नेता लुप्तप्राय हो गए
हर मुद्दों पर लड़ने के चर्चे आम हो गए 
सोने की चिड़िया अब कहानियों में रह गई 
निस्वार्थ भाव से विहीन सत्ता हो गई 
निर्भया के नाम पर कई चाल चल गया 
यह कौन सा है खून जो निर्लज्ज हो गया 
आजाद मेरे देश.... 

वेदों की ऋचाओं को जरा फिर से याद कर 
विरासत में मिली सभ्यता पर फिर से नाज़ कर
साम-दाम-दंड-भेद नीतियां चला 
अनितियों  पर रख दे चक्र शोर तू मचा 
विवशता को त्याग हौसलों से जगमगा
आजाद मेरे देश चल रोशनी में नहा तू!
आजाद मेरे देश चल रोशनी में नहा तू!
~बोधमिता

युवा

उफ़  ये कैसा युवा वर्ग है  

जिम में जाता जिमनास्ट नहीं है

खेलता कूदता सब की- बोर्ड पर 

ना 'तन' स्वस्थ ना 'मन' स्वस्थ है 

उफ़ ये कैसा युवा वर्ग है !


दुनिया इनकी बहुत बड़ी है 

घर पर ही सब पा जाने की ख्वाहिश 

पैसों की ताकत को जाने फिर भी 

मुट्ठी कभी भी बंद नहीं है

उफ़ ये कैसा युवा वर्ग है !


इन्टरनेट को अपना माने

रिश्ते-नाते कर दिए किनारे 

इनको भूख भी नेट की लगती 

मैसेज ना पायें एक दिन भी 

हो जाते ये बड़े बिचारे

उफ़ ये कैसा युवा वर्ग है !


मौसम कब दीवाना लगता 

ये तो इनको होश नहीं है

घूमते बेसब्रों बेगानों जैसे 

सोचे हम हैं बड़े सयाने 

उफ़ ये कैसा युवा वर्ग है !

                              ~ बोधमिता 


बिटिया


Suhani Shrivastava - Quora


दे गया उलाहना, संस्कारी मन !!

कैसे रौब गांठ लूँ तुझ पर, 

तू मेरी नन्ही सी चिड़िया.

पिंजरे में बंद करूँ तो कैसे?

तू मेरी सांसों की हलचल.

किस अंकुश की खूंटी से बांधूं?

तू  है  मेरा  नयन  सितारा.

 

मेरी संस्कारों  की  बेडी  ऐसी

जिसमे बंध बिंध गया लड़कपन

 

तुझको भी मन बांधना चाहे

तब दे गया उलाहना संस्कारी मन

हाथ पसारे गगन खड़ा है

नियति चक्र में रंग भरा है

इन्द्रधनुषी रंगों से आभाषित

गर्व - दर्प से चमके मस्तक

कलुष की कोई छाँव नहीं हो

हो उज्जवल अखंड ये तेरा जीवन

                        __बोधमिता

 

प्यार


प्यार करने वालों के दिल 

कांच से क्यूँ होते हैं?

कभी सोचती हूँ दुनिया

बड़ी सुन्दर सजीली है

इसे सुन्दर बनाते हैं वो लोग 

जिनके दिल की धड़कने

धड़कती  है किसी और के लिए,

पर जहाँ ये धड़कने होती हैं 

वो जगह बड़ी नाजुक सी होती है.

कभी सोचती हूँ आज के दौर में

प्यार करता है कौन?

जिनके दिल और दिमाग

 परिपक्व होते हैं वो या

अपरिपक्व युवाओं के बीच ही

यह रिश्ता पनपता है और 

दफ़न हो जाता है किसी गहरे गड्डे में 

कहीं भी जाओ,किसी सड़क से गुजरो,

रेस्तरां में जाओ, बाग़ बगीचों में जाओ,

यहाँ तक की ऑनलाइन भी, हर तरफ से 

आवाज आती है चटाक की ,

कांच ही तो है, चट से टूट जाता है

कभी न जुड़ने के लिए.

और जो कांच की चुभन होती है

वो बिखर जाती है सब तरफ, चारो ओर

जिनसे आह के सिवा

 कुछ सुनाई ही नहीं देता.

कभी सोचती हूँ क्या 

प्यार बुखार है छोटी कच्ची उम्र का?

या बदला है किसी टूटे हुए दिल का?

समझ नहीं आता , जाने कितने

लैला मजनू हुए , शीरी फरहाद  हुए

फिर भी दुनिया में लोग आज भी 

प्यार तो करते हैं, और करते रहेंगे.

दिल भी टूटेंगे, मुस्कुराहटें  भी होंगी.

और ये दुनिया .......

ये दुनिया तो सुन्दर है, साहेब....

सुन्दर ही रहेगी

चाहे प्यार कांच से हो या पत्थर से !

                                           ~ बोधमिता 

ये हैं सच्‍चे प्‍यार की 15 निशानियां ...

माँ मै तेरी प्यारी बेटी ,

माँ मै तेरी प्यारी बेटी ,
क्यूँ रहती तू मुझसे रूठी !

निकल चली उस राह अकेली
जिस में तेरा साथ नहीं
 प्यारा आशीर्वाद नहीं ,
लगती सारी सड़के सूनी 
यहाँ की हर एक राह अधूरी ,
माँ मै तेरी प्यारी बेटी !

 मंजिल तक पहुचुं तो कैसे
मन के भीतर छाव नहीं है
तेरी सारी बातें मानू ,
तू भी मुझसे हां तो कह दे
 दे दे मुझको जीवन मेरा,
जैसा भी हो अंत सफ़र का 

अभी तो मेरे साथ रहो माँ,
जीवन नौका खोल दो मेरी 
जाने दो डगमग कर इसको ,
मै जानू हूँ साथ हो तेरा 
तो सो लूँ मै काटों पर भी ,
माँ मै तेरी प्यारी बेटी!

तेरे कटु वचनों में अमृत
ऐसा मैंने जाना है
तपते रेगिस्तान में भी
तुमने मुझको जल दिलवाया है
कैसी भी हो राह सफ़र की
तुमने चलना सिखलाया माँ

फिर क्यूँ  डरती, रूठती मुझसे,
क्या जाने उस राह में बैठा 
मुझे कहीं कोई ईश मिले
जीवन तर जाये मेरा 
मुझे कोई जगदीश मिले
न कोई मिले तो साथ है तेरा 
जन्मो जन्मो तर जाऊं मै ,
माँ मै तेरी प्यारी  बेटी.माँ मै तेरी प्यारी  बेटी
                                                             ~बोधमिता   

गाँव


बिताये थे जहाँ
सुनहरे दिन बचपन के
वो गलियाँ अब भी
याद मुझे करती हैं,

उठाया करता था
जो घर मेरे नखरे हजार
वो दर-ओ-दीवार
इंतजार मेरा करते हैं,

सिखाया था जिसने
गिर कर सम्हलने का हुनर
उन रास्तों पर मुझ को
गुमान आज भी है,

Between Belgahna and Pendra Road in Chhattisgarh, India. | Flickr

पार कर शरारत की
हर सीमा को लांघा था
सुनो!उस बागीचे में
शैशव मेरा सुरक्षित है,

चिढ़ाया करते थे जो
बातों में मज़े ले कर
उन दोस्तों की यादों में
ज़िक्र मेरा हरदम है

तन्हाई में गाँव मेरे!
तुम ही तो साथी हो
काश! तुम पे वार सकूँ
जिंदगी जो बाक़ी हो।।
~बोधमिता

रात...

सर्द और अंधियारी रात
जिसमें सारी आधी बात

नयी पुरानी कुछ सौगात
दुल्हन लाने चली बारात
मनचलों की आवारगी सी
नवयुगलों की शर्मीली बात

Top Holiday Events & Attractions in Philly's Countryside — Visit ...

आधे चाँद की पूरी रात
नयनों नयनों चलती बात
सपनों के सच होने तक
पलकें नहीं झपकाती रात


जाने फिर क्या होती बात
मलिन साँझ के साए सी
हो जाती कजरारी रात
नववधू प्रौढ़ा हो जाती

युवक अनन्त में खो जाता
गृहस्थी के बोझ तले
अस्तित्व दबा ही रह जाता
जीवन गुत्थी उलझी जाती

इन उलझे धागे सुलझाने
जागो सहृदयी रातों में
बैठो कुछ मिठास भरो
अपनी रीति बातों में ||

~बोधमिता

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

मैं सोना चाहती हूँ...


मैं सोना चाहती हूँ
किंतु....
यह मन तुम्हारी
यादों की कलाई थाम
मुझे लिए जाता है
तुम्हारे इर्द-गिर्द
मनस पर भाव उकेरता है
हृदय को बड़ा तड़पाता है
सुनो.... मैं सचमुच
रातों के सुनसान में,
कतई जागना नहीं चाहती,
और स्त्रियों की तरह
नियम-पूर्वक, शांत-चित्त
उठना जागना चाहती हूँ,
सारी संवेदनाओं को
थके हुए शरीर के साथ
नींद से भरी पलकों में छुपा,
देखना चाहती हूँ
कई सच्चे झूठे सपने,
अलसुबह सपनों की
जुगाली करना चाहती हूँ
सुनो ... सुनो ना...
मैं सोना चाहती हूँ
 किंतु...
निद्रा का आवाहन करते ही
तुम्हारे कहे अनकहे सारे शब्द
नर्तक बन घूमते हैं,
मेरे मनस पटल पर
उकेरते हैं कई तस्वीरें
तुम्हारी - मेरी,
उन तस्वीरों के
पृष्ठ होते-होते
अनगिनत हो जाते हैं
और मेरी बोझिल पलके
झटके से खुल जाती हैं,
खुली पलकों से
सारा संसार अधूरा लगता है,
अतएव, पुनः नींद के आगोश में
समा जाना चाहती हूँ
हाँ मैं सोना चाहती हूँ
सुनो ! मैं गहरी नींद सोना चाहती हूँ!!
~ बोधमिता