बिताये थे जहाँ
सुनहरे दिन बचपन के
वो गलियाँ अब भी
याद मुझे करती हैं,
उठाया करता था
जो घर मेरे नखरे हजार
वो दर-ओ-दीवार
इंतजार मेरा करते हैं,
सिखाया था जिसने
गिर कर सम्हलने का हुनर
उन रास्तों पर मुझ को
गुमान आज भी है,
पार कर शरारत की
हर सीमा को लांघा था
सुनो!उस बागीचे में
शैशव मेरा सुरक्षित है,
चिढ़ाया करते थे जो
बातों में मज़े ले कर
उन दोस्तों की यादों में
ज़िक्र मेरा हरदम है
तन्हाई में गाँव मेरे!
तुम ही तो साथी हो
काश! तुम पे वार सकूँ
जिंदगी जो बाक़ी हो।।
~बोधमिता
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