शनिवार, 6 जून 2020

गाँव


बिताये थे जहाँ
सुनहरे दिन बचपन के
वो गलियाँ अब भी
याद मुझे करती हैं,

उठाया करता था
जो घर मेरे नखरे हजार
वो दर-ओ-दीवार
इंतजार मेरा करते हैं,

सिखाया था जिसने
गिर कर सम्हलने का हुनर
उन रास्तों पर मुझ को
गुमान आज भी है,

Between Belgahna and Pendra Road in Chhattisgarh, India. | Flickr

पार कर शरारत की
हर सीमा को लांघा था
सुनो!उस बागीचे में
शैशव मेरा सुरक्षित है,

चिढ़ाया करते थे जो
बातों में मज़े ले कर
उन दोस्तों की यादों में
ज़िक्र मेरा हरदम है

तन्हाई में गाँव मेरे!
तुम ही तो साथी हो
काश! तुम पे वार सकूँ
जिंदगी जो बाक़ी हो।।
~बोधमिता

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