शनिवार, 6 जून 2020

आजाद - देश!



आजाद मेरे देश क्यों रोता खड़ा है तू 
संसाधनों से पूर्ण क्यों जख्मी पड़ा है तू 
दुनिया के बाजारों में क्या नीलाम हो गया 
संविधान की धाराओं में उलझा ही रह गया 
अभिव्यक्तियों की दौड़ में लाचार हो गया 
क्यों स्वतंत्रता के दौर में स्वच्छंद हो गया !
आजाद मेरे देश ...

रणबांकुरे के खून से सींचा गया था तू 
कीमत थी जान की तभी आजाद हुआ तू 
ना हिंदू- मुसलमां न कोई सिख इसाई 
हर कौम के बेटो ने अपनी जान लुटाई 
फिर कौम के ही नाम पर बंटता गया है तू 
क्यों धर्म के आकाओं से डरता रहा है तू 
आजाद मेरे देश ...

निर्भीक राष्ट्र नेता लुप्तप्राय हो गए
हर मुद्दों पर लड़ने के चर्चे आम हो गए 
सोने की चिड़िया अब कहानियों में रह गई 
निस्वार्थ भाव से विहीन सत्ता हो गई 
निर्भया के नाम पर कई चाल चल गया 
यह कौन सा है खून जो निर्लज्ज हो गया 
आजाद मेरे देश.... 

वेदों की ऋचाओं को जरा फिर से याद कर 
विरासत में मिली सभ्यता पर फिर से नाज़ कर
साम-दाम-दंड-भेद नीतियां चला 
अनितियों  पर रख दे चक्र शोर तू मचा 
विवशता को त्याग हौसलों से जगमगा
आजाद मेरे देश चल रोशनी में नहा तू!
आजाद मेरे देश चल रोशनी में नहा तू!
~बोधमिता

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