माँ मै तेरी प्यारी बेटी ,
क्यूँ रहती तू मुझसे रूठी !
निकल चली उस राह अकेली
जिस में तेरा साथ नहीं
प्यारा आशीर्वाद नहीं ,
लगती सारी सड़के सूनी
यहाँ की हर एक राह अधूरी ,
माँ मै तेरी प्यारी बेटी !
मंजिल तक पहुचुं तो कैसे
मन के भीतर छाव नहीं है
तेरी सारी बातें मानू ,
तू भी मुझसे हां तो कह दे
दे दे मुझको जीवन मेरा,
जैसा भी हो अंत सफ़र का
अभी तो मेरे साथ रहो माँ,
जीवन नौका खोल दो मेरी
जाने दो डगमग कर इसको ,
मै जानू हूँ साथ हो तेरा
तो सो लूँ मै काटों पर भी ,
माँ मै तेरी प्यारी बेटी!
तेरे कटु वचनों में अमृत
ऐसा मैंने जाना है
तपते रेगिस्तान में भी
तुमने मुझको जल दिलवाया है
कैसी भी हो राह सफ़र की
तुमने चलना सिखलाया माँ
फिर क्यूँ डरती, रूठती मुझसे,
क्या जाने उस राह में बैठा
मुझे कहीं कोई ईश मिले
जीवन तर जाये मेरा
मुझे कोई जगदीश मिले
न कोई मिले तो साथ है तेरा
जन्मो जन्मो तर जाऊं मै ,
माँ मै तेरी प्यारी बेटी.माँ मै तेरी प्यारी बेटी
~बोधमिता
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