तुमको भीड़ में मिलाने की
बहुत कोशिश कर ली मैंने
सोचा था लोगो में खो कर
इतने न याद आओगे तुम
तुम्हारे ख्यालो को मैंने
बंद करना चाहा तालों में
और …
सोच लिया अब तुम फिर-
न आओगे मेरे ख्यालो में
पर तुम हर बार ही दस्तक
दे - दे कर
मन प्राण ही मेरे हरते हो
जब भी अकेली होती हूँ
खुद में……
प्रतिबिंब तुम्हारा पाती हूँ
ख्वाब सी लगती तेरी बातें
मैं खुद परी बन जाती हूँ
फिर सुध - बुध खो इस
दुनिया से
तेरे - मेरे सपने बुनती हूँ
जब टूटे भरम तो फिर से मैं
तुझको भीड़ में मिलाने की
नाकाम सी कोशिश करती हूँ .......
~ बोधमिता ~
वाह सुंदर भाव ....भुलाने की कोशिश नाकाम ही रहती है ....
जवाब देंहटाएंDhanyawad Mohan Sethi ji.... :)
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