जब मै दुनिया मे आई
मुझे मेरे प्रभु ने
ताकत दी
परों के रुप मे
बचपन भर उन परों से
मै खूब उड़ी
उन्मुक्त....
यौवन की दहलीज पर
बडी खूबसूरत सी
दुनिया दिखी
मै ....
दुनिया मे बसने लगी।
और भूलने लगी
उन परों को
धीरे - धीरे बडी हुई
दुनिया बसाई
प्यारी सी दुनिया
पर.………
पत़ा नही मन
कहीं अटका हुआ
सा था …
कुछ चाहिए था
परन्तु क्या
कुछ समझ नही आया
न जाने क्यू
खुद को दुःखी पाया
एक दिन
मैने पुछा प्रभु से
मै क्यू हूँ दुखी
जबकी
तेरा दिया सब है
मेरे आस - पास
प्रभु कुछ ना बोले
मुझे लगा नाराज हैं
मै सोचने लगी
क्या हुआ ??
क्यू किया इष्ट को
नाराज…
तब सहसा
आया मुझे याद
आया मुझे याद
उस ताकत का
मुझे दुनिया मे
आते ही
मैने पाया उसको
अपने ही अन्तर मे
वो पंख मिले मुझे
बस जरा कमजोर हैं
उन पंखों को
मजबूत बनाना है
मजबूत बनाना है
और उडना है
खुले आसमान मे
उन्मुक्त ......
- बोधमिता ।।
- बोधमिता ।।
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