बैठ उसी की छाँव में
उसको ही गुनती जाऊँ
मन करता है।
सुन उसकी बातों को
हँस-हँस दोहरी हो जाऊँ
मन करता है।
याद करूँ तन्हाई में
और हौले से मुस्काऊँ
मन करता है।
दिल मे रख तस्वीरें उसकी
तकदीर मैं उसकी बन जाऊँ
मन करता है।
रातों में उसकी ख्वाहिश ले
मैं तकिये में घुस जाऊँ
मन करता है।
याद आए जब महफ़िल में वो
नीची नज़रें कर शरमाऊँ
मन करता है।
अल् सुबह ओस कणों में
मुस्काता उसको पा जाऊँ
मन करता है।
सोते जागते हर क्षण में
उसको ही मैं जपती जाऊँ
मन करता है।
~ बोधमिता
उसको ही गुनती जाऊँ
मन करता है।
सुन उसकी बातों को
हँस-हँस दोहरी हो जाऊँ
मन करता है।
याद करूँ तन्हाई में
और हौले से मुस्काऊँ
मन करता है।
दिल मे रख तस्वीरें उसकी
तकदीर मैं उसकी बन जाऊँ
मन करता है।
रातों में उसकी ख्वाहिश ले
मैं तकिये में घुस जाऊँ
मन करता है।
याद आए जब महफ़िल में वो
नीची नज़रें कर शरमाऊँ
मन करता है।
अल् सुबह ओस कणों में
मुस्काता उसको पा जाऊँ
मन करता है।
सोते जागते हर क्षण में
उसको ही मैं जपती जाऊँ
मन करता है।
~ बोधमिता
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