निस्तेज सा सूरज लगे
निष्प्राण सी निज चेतना
नि:शब्द सी वायु चले
नि:शक्त सी हर वेदना
निकुंज कैसा है यहाँ
निष्ठुर दिखे मन आँगना
निमग्न होते जा रहे
निबद्ध सारे पल जहाँ
निमिष - निमिष कर जल रहा
निर्माल्य नारी जाति का
निर्भेद कर निर्मुक्त कर
निर्वाण सी यह प्रेरणा ।
~ बोधमिता
निष्प्राण सी निज चेतना
नि:शब्द सी वायु चले
नि:शक्त सी हर वेदना
निकुंज कैसा है यहाँ
निष्ठुर दिखे मन आँगना
निमग्न होते जा रहे
निबद्ध सारे पल जहाँ
निमिष - निमिष कर जल रहा
निर्माल्य नारी जाति का
निर्भेद कर निर्मुक्त कर
निर्वाण सी यह प्रेरणा ।
~ बोधमिता
:).. mita kitne pyare shabd tumne chune hain... ek bahut hi behtareen abhivyakti!
जवाब देंहटाएंdhanyawad dada...
हटाएं....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .