रविवार, 8 जुलाई 2012

"बहन "

चलते ~ फिरते 
आते   जाते 
उन गलियों के 
चौबारों   में 
जब ~ जब मैं 
झाँका करती हूँ 
तब तू बड़ा
याद आती है 
"बहन"

माँ का गुस्सा 
लाड पिता का 
सबका किया था 
हमने सांझा 
सुख भी बाँटा 
दुःख भी बाँटा 
बाँट लिया था 
थोडा जीवन 
फिर ऐसा क्या 
इतर हुआ  कि 
मेरी अपनी 
और है दुनिया 
तेरी दुनिया 
कहीं और की 
कितने उत्सव 
आते जाते 
कितनी खुशियाँ 
भी मन जाती 
सब मिल कर 
कितना कुछ करते 
तब तू इक 
"याद"
सी बन कर 
बस रह जाती है 
"बहन"
                                         ~ बोधमिता 

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