खुशियाँ हैं कई सपने हैं
सारा लाड ही लगा
पर स्कूल छूटने के दुःख अपने हैं
सोचते थे छूटेगा स्कूल तो आज़ादी होगी
हर घंटे के बंधन से छुट्टी होगी
मैडम के गुस्से से भी कुट्टी होगी
पर आज जब आखिरी दिन है यहाँ
न जाने क्यूँ मैडम का गुस्सा
सारा लाड ही लगा
आज आँखे बरबस ही हो रही है नम
लगता है खुले आसमान में जाने का है गम
जाना तो है ही, पर अलविदा कहने से पहले
चाहते हैं हम हमारी शरारतों को कर माफ़
दो ऐसा आशीष जहाँ भी जाएँ
हमारे विद्यालय और गुरुजन को लोग
हमसे पहचान पायें ॥
~ बोधमिता
~ बोधमिता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें