कोई आ रहा है मेरे
बचपन के गाँव से
धूल मिट्टी से सने हुए
हाथ - पैर
साथ साथ सायकल से गिरकर
आये जो चोट के निशान
खेल खेल में होने वाली
तू-तू मैं-मैं से उपजी
खिसियाहट
एक दूसरे को मारने छेड़ने की
हरदम तिलमिलाहट
गिल्ली अपनी चतुराई से
आगे ले जाने की
कसमसाहट
खुद को हरदम जीतता हुआ
देखने का घमण्ड
रेत पर घरोंदे बनाने और
तोड़ने का सुकून
जिम्मेदारियों का आभाव
चेहरे पर हरदम
ताजे फूल सी मुस्कान
भले ही कुछ देर के लिए
वो ला रहा है
मेरे बचपन के गाँव से
कोई आ रहा है
मेरे बचपन के गाँव से ।।
~ बोधमिता
बचपन की यादें ताज़ा करती पोस्ट ...:)
जवाब देंहटाएंबचपन का एक लम्हा मिल जाये .... मासूमियत के बीज तो बो लेंगे
जवाब देंहटाएंmasoomiyat ka sambandh sirf bachpan se hi kyun hota hai.... iska koi uttar ho to pl. mujhe bataiye,
हटाएंaapni meri rachna padi iske liye dhanyawad Rashmi Prabha jee..
क्या उत्तर दूँ बोधमिता जी ...... अब तो बचपन भी मासूम नहीं रहा . हाँ बड़ी उम्र में भी यदि बचपन के अंश हैं तो वह मासूम है . बचपन में हम लड़ते-झगड़ते हैं,उसे पालते नहीं .... पर जैसे जैसे हम मैं' को जीने लगते हैं , अहम् से बचपन सी मासूमियत ओझल हो जाती है
हटाएंमधुर यादें ...
जवाब देंहटाएंsach me bachpan madhurta se hi yaad aata hai...
हटाएंdhanyavad Satish jee.
खूबसूरत शब्द भाव
जवाब देंहटाएंdanyavad Anju jee..
हटाएंखूबसूरत यादें
जवाब देंहटाएंsahi kaha vandana ji... dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंछोटी सी कविता मैं पूरा बचपन समाहित कर लिया आपने, बचपन की सारी यादें ताज़ा हो गई
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