मन ये ऐसा बंधा हुआ है
पिंजरे में बंद चिड़िया जैसे
जितना मै सुलझाना चाहूँ
उलझा जाये सूत के जैसे
पंख लगा कर उड़ना चाहूँ
गिरता जाये पानी में पत्थर हो जैसे
आल्हादित हो खुश होना चाहूँ
ये हो जाये सूने घर और आंगन जैसे
पर ये मन हार न माने
चीटी गिर-गिर चढ़ती जाये जैसे
साहस तो देखो इस मन का
तोड़े इसने बंधन सारे
बैठ कर हर एक सूत काते
पत्थर के टुकड़े कर डाले
सूना मन आबाद किया फिर
फिर तडपा यह सूनेपन को ।।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसूना मन आबाद किया फिर
जवाब देंहटाएंफिर तडपा यह सूनेपन को ।
bahut sunder bhaw
regards
naaz
dhanyawad Sngeeta Swaroop ji evam Mridula Harshvardhan ji.mujhe is baat se bahut khushi hui ki aapne ise pada. Thanks.
जवाब देंहटाएंउत्साहित करती रचना ..बहुत खूब
जवाब देंहटाएंdhanyawad...
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