पतंग की एक डोर थी
जो हाय मैंने छोड़ दी
समय के साथ उड़ रही
मुझे लगा की सध गयी
था डोर पर मुझे यकीं
वही घात दे चली ।
व्यंग की कटार से
हाथ मेरे बिंध गये
फिर भी थामती रही
पतंग को चाहती रही
पतंग थी मेरी मनचली
जिधर हवा उधर चली
फिर भी डोर हाथ में
थामती ख़ुशी से मै
सोचती गगन तेरा
कर मौज से अठखेलियाँ
बुरी कोई नजर उठी तो
खींच थाम लूँ तुझे
हाय !! ऐसा न हुआ
डोर दे गई दगा
मर्म मर्म भेद कर
वो हाथ छलनी कर गई ।।
~ बोधमिता
जो हाय मैंने छोड़ दी
समय के साथ उड़ रही
मुझे लगा की सध गयी
था डोर पर मुझे यकीं
वही घात दे चली ।
व्यंग की कटार से
हाथ मेरे बिंध गये
फिर भी थामती रही
पतंग को चाहती रही
पतंग थी मेरी मनचली
जिधर हवा उधर चली
फिर भी डोर हाथ में
थामती ख़ुशी से मै
सोचती गगन तेरा
कर मौज से अठखेलियाँ
बुरी कोई नजर उठी तो
खींच थाम लूँ तुझे
हाय !! ऐसा न हुआ
डोर दे गई दगा
मर्म मर्म भेद कर
वो हाथ छलनी कर गई ।।
~ बोधमिता
पतंग की एक डोर थी
जवाब देंहटाएंजो हाय मैंने छोड़ दी...............ek dard
:)
जवाब देंहटाएंनारी के दर्द को शब्द दे दिए गए हैं
जवाब देंहटाएं:) thanks
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