आज यूँ ही उठ कर
चली आई तेरे सामने
न कोई साज-सज्जा
न कोई बनाव-सिंगार
यूँ तो हर वक़्त
तेरे लिए सजने-सवरने
का मन होता है
पर आज ......
आज व्यथित है मन
और द्रवित भी ...
तुम मेरे लिए निष्कपट
और निश्छल हो हमेशा
यह जानती हूँ मै
परन्तु रहो सदैव
मेरी जिंदगी में
यह नहीं चाहती
मेरी जिंदगी जैसी
श्वेत और श्याम थी
तुम्हारे बिना
मुझे वैसी ही जिंदगी
के साथ रहना था
पर तुम्हारे आते ही
रंग भरने लगते हैं
आँखों में सपने
उतरने चढने लगते हैं
तब लगता है की मै
इन्द्रधनुष और तुम
इन्द्र की तरह हो
तुम्हारी आँखों में
कभी छल कपट
नहीं दिखता मुझे
बस यही निष्कपटता
तुम्हारी मुझे कर देती है
तार - तार
मै दुनिया का एक
बड़ा छलावा हूँ
तुम मुझसे दूर रहो
कहीं मेरी संगती से
तुम में वो अवगुण
ना आ जायें जो
इन्द्र को कुटिल
और श्रापित
कर देता था ।।
~बोधमिता
jindagi yahi to hai... kisi ke aane bhar se ek dum khush ho jana, to sirf na dekh pane ke wajah se syah ho jana...:)
जवाब देंहटाएंrang badalti duniya me aise hi jeete hian ham... hai na:)
bahut pyari!!
bahut gahan bhav sanjoye hain
जवाब देंहटाएंsunder rachna
जवाब देंहटाएंnaaz
khubb likha hai............ yun hi likhti raho .... karvan bante der na lagegi
जवाब देंहटाएंdhanyawad - Gunjan ji, Mridula Harshvardhan ji, Sangeeta ji,vandana ji aur dada...
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