निस्तेज सा सूरज लगे
निष्प्राण सी निज चेतना
नि:शब्द सी वायु चले
नि:शक्त सी हर वेदना
निकुंज कैसा है यहाँ
निष्ठुर दिखे मन आँगना
निमग्न होते जा रहे
निबद्ध सारे पल जहाँ
निमिष - निमिष कर जल रहा
निर्माल्य नारी जाति का
निर्भेद कर निर्मुक्त कर
निर्वाण सी यह प्रेरणा ।
~ बोधमिता
निष्प्राण सी निज चेतना
नि:शब्द सी वायु चले
नि:शक्त सी हर वेदना
निकुंज कैसा है यहाँ
निष्ठुर दिखे मन आँगना
निमग्न होते जा रहे
निबद्ध सारे पल जहाँ
निमिष - निमिष कर जल रहा
निर्माल्य नारी जाति का
निर्भेद कर निर्मुक्त कर
निर्वाण सी यह प्रेरणा ।
~ बोधमिता