शनिवार, 6 जून 2020

बिटिया


Suhani Shrivastava - Quora


दे गया उलाहना, संस्कारी मन !!

कैसे रौब गांठ लूँ तुझ पर, 

तू मेरी नन्ही सी चिड़िया.

पिंजरे में बंद करूँ तो कैसे?

तू मेरी सांसों की हलचल.

किस अंकुश की खूंटी से बांधूं?

तू  है  मेरा  नयन  सितारा.

 

मेरी संस्कारों  की  बेडी  ऐसी

जिसमे बंध बिंध गया लड़कपन

 

तुझको भी मन बांधना चाहे

तब दे गया उलाहना संस्कारी मन

हाथ पसारे गगन खड़ा है

नियति चक्र में रंग भरा है

इन्द्रधनुषी रंगों से आभाषित

गर्व - दर्प से चमके मस्तक

कलुष की कोई छाँव नहीं हो

हो उज्जवल अखंड ये तेरा जीवन

                        __बोधमिता

 

प्यार


प्यार करने वालों के दिल 

कांच से क्यूँ होते हैं?

कभी सोचती हूँ दुनियाhr

बड़ी सुन्दर सजीली है

इसे सुन्दर बनाते हैं वो लोग 

जिनके दिल की धड़कने

धड़कती  है किसी और के लिए,

पर जहाँ ये धड़कने होती हैं 

वो जगह बड़ी नाजुक सी होती है.

कभी सोचती हूँ  के दौर में

प्यार करता है कौन?

जिनके दिल और दिमाग

 परिपक्व होते हैं वो या

अपरिपक्व युवाओं के बीच ही

यह रिश्ता पनपता है और 

दफ़न हो जाता है किसी गहरे गड्डे में 

कहीं भी जाओ,किसी सड़क से गुजरो,

रेस्तरां में जाओ, बाग़ बगीचों में जाओ,

यहाँ तक की ऑनलाइन uhtyrtdd6yghhhhhhhvcr2rr44rr4rrr4rrr4r444rrrr4rZv2wwz,wwzxxzwwwvzz2zwz2zzzzzzwzzzzzzwzzzwzsz🙂🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳e rvs4v rvvfvtvvvgvvfvtvtvvfvfvfvvgfvfffvffvffvfrfvfrfvrvrvvvvrvvrdvvedtttttttttt5ttttetttttt5ttttttttttttttttttttttttddddtdddtdtddddddtddttttetteeteetttetteeeededetedeettdtdttdtdtभी, हर तरफ से 

आवाज आती है चटाक की ,

कांच ही तो है, चट से टूट जाता है

कभी न जुड़ने के लिए.

और जो कांच की चुभन होती है

वो बिखर जाती है सब तरफ, चारो ओर

जिनसे आह के सिवा

 कुछ सुनाई ही नहीं देता.

कभी सोचती हूँ क्या 

प्यार बुखार है छोटी कच्ची उम्र का?

या बदला है किसी टूटे हुए दिल का?

समझ नहीं आता , जाने कितने

लैला मजनू हुए , शीरी फरहाद  हुए

फिर भी दुनिया में लोग आज भी 

प्यार तो करते हैं, और करते रहेंगे.

दिल भी टूटेंगे, मुस्कुराहटें  भी होंगी.

और ये दुनिया .......

ये दुनिया तो सुन्दर है, साहेब....

सुन्दर ही रहेगी

चाहे प्यार कांच से हो या पत्थर से !

                                           ~ बोधमिता 

ये हैं सच्‍चे प्‍यार की 15 निशानियां ...

माँ मै तेरी प्यारी बेटी ,

माँ मै तेरी प्यारी बेटी ,
क्यूँ रहती तू मुझसे रूठी !

निकल चली उस राह अकेली
जिस में तेरा साथ नहीं
 प्यारा आशीर्वाद नहीं ,
लगती सारी सड़के सूनी 
यहाँ की हर एक राह अधूरी ,
माँ मै तेरी प्यारी बेटी !

 मंजिल तक पहुचुं तो कैसे
मन के भीतर छाव नहीं है
तेरी सारी बातें मानू ,
तू भी मुझसे हां तो कह दे
 दे दे मुझको जीवन मेरा,
जैसा भी हो अंत सफ़र का 

अभी तो मेरे साथ रहो माँ,
जीवन नौका खोल दो मेरी 
जाने दो डगमग कर इसको ,
मै जानू हूँ साथ हो तेरा 
तो सो लूँ मै काटों पर भी ,
माँ मै तेरी प्यारी बेटी!

तेरे कटु वचनों में अमृत
ऐसा मैंने जाना है
तपते रेगिस्तान में भी
तुमने मुझको जल दिलवाया है
कैसी भी हो राह सफ़र की
तुमने चलना सिखलाया माँ

फिर क्यूँ  डरती, रूठती मुझसे,
क्या जाने उस राह में बैठा 
मुझे कहीं कोई ईश मिले
जीवन तर जाये मेरा 
मुझे कोई जगदीश मिले
न कोई मिले तो साथ है तेरा 
जन्मो जन्मो तर जाऊं मै ,
माँ मै तेरी प्यारी  बेटी.माँ मै तेरी प्यारी  बेटी
                                                             ~बोधमिता   

गाँव


बिताये थे जहाँ
सुनहरे दिन बचपन के
वो गलियाँ अब भी
याद मुझे करती हैं,

उठाया करता था
जो घर मेरे नखरे हजार
वो दर-ओ-दीवार
इंतजार मेरा करते हैं,

सिखाया था जिसने
गिर कर सम्हलने का हुनर
उन रास्तों पर मुझ को
गुमान आज भी है,

Between Belgahna and Pendra Road in Chhattisgarh, India. | Flickr

पार कर शरारत की
हर सीमा को लांघा था
सुनो!उस बागीचे में
शैशव मेरा सुरक्षित है,

चिढ़ाया करते थे जो
बातों में मज़े ले कर
उन दोस्तों की यादों में
ज़िक्र मेरा हरदम है

तन्हाई में गाँव मेरे!
तुम ही तो साथी हो
काश! तुम पे वार सकूँ
जिंदगी जो बाक़ी हो।।
~बोधमिता

रात...

सर्द और अंधियारी रात
जिसमें सारी आधी बात

नयी पुरानी कुछ सौगात
दुल्हन लाने चली बारात
मनचलों की आवारगी सी
नवयुगलों की शर्मीली बात

Top Holiday Events & Attractions in Philly's Countryside — Visit ...

आधे चाँद की पूरी रात
नयनों नयनों चलती बात
सपनों के सच होने तक
पलकें नहीं झपकाती रात


जाने फिर क्या होती बात
मलिन साँझ के साए सी
हो जाती कजरारी रात
नववधू प्रौढ़ा हो जाती

युवक अनन्त में खो जाता
गृहस्थी के बोझ तले
अस्तित्व दबा ही रह जाता
जीवन गुत्थी उलझी जाती

इन उलझे धागे सुलझाने
जागो सहृदयी रातों में
बैठो कुछ मिठास भरो
अपनी रीति बातों में ||

~बोधमिता

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

मैं सोना चाहती हूँ...


मैं सोना चाहती हूँ
किंतु....
यह मन तुम्हारी
यादों की कलाई थाम
मुझे लिए जाता है
तुम्हारे इर्द-गिर्द
मनस पर भाव उकेरता है
हृदय को बड़ा तड़पाता है
सुनो.... मैं सचमुच
रातों के सुनसान में,
कतई जागना नहीं चाहती,
और स्त्रियों की तरह
नियम-पूर्वक, शांत-चित्त
उठना जागना चाहती हूँ,
सारी संवेदनाओं को
थके हुए शरीर के साथ
नींद से भरी पलकों में छुपा,
देखना चाहती हूँ
कई सच्चे झूठे सपने,
अलसुबह सपनों की
जुगाली करना चाहती हूँ
सुनो ... सुनो ना...
मैं सोना चाहती हूँ
 किंतु...
निद्रा का आवाहन करते ही
तुम्हारे कहे अनकहे सारे शब्द
नर्तक बन घूमते हैं,
मेरे मनस पटल पर
उकेरते हैं कई तस्वीरें
तुम्हारी - मेरी,
उन तस्वीरों के
पृष्ठ होते-होते
अनगिनत हो जाते हैं
और मेरी बोझिल पलके
झटके से खुल जाती हैं,
खुली पलकों से
सारा संसार अधूरा लगता है,
अतएव, पुनः नींद के आगोश में
समा जाना चाहती हूँ
हाँ मैं सोना चाहती हूँ
सुनो ! मैं गहरी नींद सोना चाहती हूँ!!
~ बोधमिता

शनिवार, 18 नवंबर 2017

मन करता है!

बैठ उसी की छाँव में
उसको ही गुनती जाऊँ
मन करता है।

सुन उसकी बातों को
हँस-हँस दोहरी हो जाऊँ
मन करता है।

याद करूँ तन्हाई में
और हौले से मुस्काऊँ
मन करता है।

दिल मे रख तस्वीरें उसकी
तकदीर मैं उसकी बन जाऊँ
मन करता है।

रातों में उसकी ख्वाहिश ले
मैं तकिये में घुस जाऊँ
मन करता है।

याद आए जब महफ़िल में वो
नीची नज़रें कर शरमाऊँ
मन करता है।

अल् सुबह ओस कणों में
मुस्काता उसको पा जाऊँ
मन करता है।

सोते जागते हर क्षण में
उसको ही मैं जपती जाऊँ
मन करता है।
~  बोधमिता