दिल की बात, धीरे से कहती हूँ, हौले से सुनना मैं शब्द हूँ ,मुझको भावों में, पिरो कर सुनना ।।
बुधवार, 28 नवंबर 2012
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
शुक्रवार, 9 नवंबर 2012
बचपन
कोई आ रहा है मेरे
बचपन के गाँव से
धूल मिट्टी से सने हुए
हाथ - पैर
साथ साथ सायकल से गिरकर
आये जो चोट के निशान
खेल खेल में होने वाली
तू-तू मैं-मैं से उपजी
खिसियाहट
एक दूसरे को मारने छेड़ने की
हरदम तिलमिलाहट
गिल्ली अपनी चतुराई से
आगे ले जाने की
कसमसाहट
खुद को हरदम जीतता हुआ
देखने का घमण्ड
रेत पर घरोंदे बनाने और
तोड़ने का सुकून
जिम्मेदारियों का आभाव
चेहरे पर हरदम
ताजे फूल सी मुस्कान
भले ही कुछ देर के लिए
वो ला रहा है
मेरे बचपन के गाँव से
कोई आ रहा है
मेरे बचपन के गाँव से ।।
~ बोधमिता
मन ...
मन ये ऐसा बंधा हुआ है
पिंजरे में बंद चिड़िया जैसे
जितना मै सुलझाना चाहूँ
उलझा जाये सूत के जैसे
पंख लगा कर उड़ना चाहूँ
गिरता जाये पानी में पत्थर हो जैसे
आल्हादित हो खुश होना चाहूँ
ये हो जाये सूने घर और आंगन जैसे
पर ये मन हार न माने
चीटी गिर-गिर चढ़ती जाये जैसे
साहस तो देखो इस मन का
तोड़े इसने बंधन सारे
बैठ कर हर एक सूत काते
पत्थर के टुकड़े कर डाले
सूना मन आबाद किया फिर
फिर तडपा यह सूनेपन को ।।
शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012
श्याम
सांवली सूरत में,
मोहनी मूरत में,
'श्याम' तुम जचते हो।
अधरों की हंसी से,
बातों की मस्ती से,
'श्याम' तुम जचते हो।
लम्बे-लम्बे बालों में,
काली तिरछी आँखों में,
'श्याम' तुम जचते हो।
नटखट सी चालों में,
भोली सी बातों में,
'श्याम' तुम जचते हो।
तिरछी मुस्कानों में,
गलों के डिम्पल में,
'श्याम' तुम जचते हो।।
~ बोधमिता
मंगलवार, 25 सितंबर 2012
vyakulta
एक आवरण में समा जाने के लिए,
मै व्याकुल हूँ 'तुझे' पा जाने के लिए |
दीयों में रौशनी सदैव झिलमिलाने के लिए
मै व्याकुल हूँ 'बाती' बन जाने के लिए |
कुछ कदम उठते हैं डगमगाने के लिए,
मै व्याकुल हूँ उन्हें 'थाम' लेने के लिए |
मुख में वाणी मिठास बिखेरने के लिए,
मै व्याकुल हूँ 'जिह्वा' बन जाने के लिए |
पौधों में पुष्प खिलखिलाने के लिए,
मै व्याकुल हूँ 'तितली' बन जाने के लिए |
सागर में नदियाँ मिल जाने के लिए
मै व्याकुल हूँ 'धरा' बन जाने के लिए |
~बोधमिता
सदस्यता लें
संदेश (Atom)