दिल की बात, धीरे से कहती हूँ, हौले से सुनना मैं शब्द हूँ ,मुझको भावों में, पिरो कर सुनना ।।
बुधवार, 23 जनवरी 2013
शनिवार, 19 जनवरी 2013
गुरुवार, 29 नवंबर 2012
adhurapan
तेरे बारे में जो लिखती
बन जाती है एक कविता
तू मेरे आदर्शों में स्थापित
क्यूँ बैठी है रूठ के मुझसे
तेरे बिना ये जीवन सूना
सूनी हर एक राह डगर की
छोड़ न तू साँसों की डोरी .....
या हिम्मत दे दे मुझको इतनी
की जी लूँ मैं ये जीवन ऐसे
जिसमे हो प्रतिबिम्ब तुम्हारा
देखकर मुझको लोग ये बोले
देखो आयी 'उषा' की बेटी ।।
~बोधमिता
क्या माँ के बिना जीवन चल पता है???
mamma i miss u....
बुधवार, 28 नवंबर 2012
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
शुक्रवार, 9 नवंबर 2012
बचपन
कोई आ रहा है मेरे
बचपन के गाँव से
धूल मिट्टी से सने हुए
हाथ - पैर
साथ साथ सायकल से गिरकर
आये जो चोट के निशान
खेल खेल में होने वाली
तू-तू मैं-मैं से उपजी
खिसियाहट
एक दूसरे को मारने छेड़ने की
हरदम तिलमिलाहट
गिल्ली अपनी चतुराई से
आगे ले जाने की
कसमसाहट
खुद को हरदम जीतता हुआ
देखने का घमण्ड
रेत पर घरोंदे बनाने और
तोड़ने का सुकून
जिम्मेदारियों का आभाव
चेहरे पर हरदम
ताजे फूल सी मुस्कान
भले ही कुछ देर के लिए
वो ला रहा है
मेरे बचपन के गाँव से
कोई आ रहा है
मेरे बचपन के गाँव से ।।
~ बोधमिता
मन ...
मन ये ऐसा बंधा हुआ है
पिंजरे में बंद चिड़िया जैसे
जितना मै सुलझाना चाहूँ
उलझा जाये सूत के जैसे
पंख लगा कर उड़ना चाहूँ
गिरता जाये पानी में पत्थर हो जैसे
आल्हादित हो खुश होना चाहूँ
ये हो जाये सूने घर और आंगन जैसे
पर ये मन हार न माने
चीटी गिर-गिर चढ़ती जाये जैसे
साहस तो देखो इस मन का
तोड़े इसने बंधन सारे
बैठ कर हर एक सूत काते
पत्थर के टुकड़े कर डाले
सूना मन आबाद किया फिर
फिर तडपा यह सूनेपन को ।।
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