दिल की बात, धीरे से कहती हूँ, हौले से सुनना मैं शब्द हूँ ,मुझको भावों में, पिरो कर सुनना ।।
शनिवार, 6 जून 2020
आजाद - देश!
युवा
उफ़ ये कैसा युवा वर्ग है
जिम में जाता जिमनास्ट नहीं है
खेलता कूदता सब की- बोर्ड पर
ना 'तन' स्वस्थ ना 'मन' स्वस्थ है
उफ़ ये कैसा युवा वर्ग है !
दुनिया इनकी बहुत बड़ी है
घर पर ही सब पा जाने की ख्वाहिश
पैसों की ताकत को जाने फिर भी
मुट्ठी कभी भी बंद नहीं है
उफ़ ये कैसा युवा वर्ग है !
इन्टरनेट को अपना माने
रिश्ते-नाते कर दिए किनारे
इनको भूख भी नेट की लगती
मैसेज ना पायें एक दिन भी
हो जाते ये बड़े बिचारे
उफ़ ये कैसा युवा वर्ग है !
मौसम कब दीवाना लगता
ये तो इनको होश नहीं है
घूमते बेसब्रों बेगानों जैसे
सोचे हम हैं बड़े सयाने
उफ़ ये कैसा युवा वर्ग है !
~ बोधमिता
बिटिया
दे गया उलाहना, संस्कारी मन !!
कैसे रौब गांठ लूँ तुझ पर,
तू मेरी नन्ही सी चिड़िया.
पिंजरे में बंद करूँ तो कैसे?
तू मेरी सांसों की हलचल.
किस अंकुश की खूंटी से बांधूं?
तू है मेरा नयन सितारा.
मेरी संस्कारों की बेडी ऐसी
जिसमे बंध बिंध गया लड़कपन
तुझको भी मन बांधना चाहे
तब दे गया उलाहना संस्कारी मन
हाथ पसारे गगन खड़ा है
नियति चक्र में रंग भरा है
इन्द्रधनुषी रंगों से आभाषित
गर्व - दर्प से चमके मस्तक
कलुष की कोई छाँव नहीं हो
हो उज्जवल अखंड ये तेरा जीवन
__बोधमिता
प्यार
प्यार करने वालों के दिल
कांच से क्यूँ होते हैं?
कभी सोचती हूँ दुनिया
बड़ी सुन्दर सजीली है
इसे सुन्दर बनाते हैं वो लोग
जिनके दिल की धड़कने
धड़कती है किसी और के लिए,
पर जहाँ ये धड़कने होती हैं
वो जगह बड़ी नाजुक सी होती है.
कभी सोचती हूँ आज के दौर में
प्यार करता है कौन?
जिनके दिल और दिमाग
परिपक्व होते हैं वो या
अपरिपक्व युवाओं के बीच ही
यह रिश्ता पनपता है और
दफ़न हो जाता है किसी गहरे गड्डे में
कहीं भी जाओ,किसी सड़क से गुजरो,
रेस्तरां में जाओ, बाग़ बगीचों में जाओ,
यहाँ तक की ऑनलाइन भी, हर तरफ से
आवाज आती है चटाक की ,
कांच ही तो है, चट से टूट जाता है
कभी न जुड़ने के लिए.
और जो कांच की चुभन होती है
वो बिखर जाती है सब तरफ, चारो ओर
जिनसे आह के सिवा
कुछ सुनाई ही नहीं देता.
कभी सोचती हूँ क्या
प्यार बुखार है छोटी कच्ची उम्र का?
या बदला है किसी टूटे हुए दिल का?
समझ नहीं आता , जाने कितने
लैला मजनू हुए , शीरी फरहाद हुए
फिर भी दुनिया में लोग आज भी
प्यार तो करते हैं, और करते रहेंगे.
दिल भी टूटेंगे, मुस्कुराहटें भी होंगी.
और ये दुनिया .......
ये दुनिया तो सुन्दर है, साहेब....
सुन्दर ही रहेगी
चाहे प्यार कांच से हो या पत्थर से !
~ बोधमिता
माँ मै तेरी प्यारी बेटी ,
गाँव
बिताये थे जहाँ
सुनहरे दिन बचपन के
वो गलियाँ अब भी
याद मुझे करती हैं,
उठाया करता था
जो घर मेरे नखरे हजार
वो दर-ओ-दीवार
इंतजार मेरा करते हैं,
सिखाया था जिसने
गिर कर सम्हलने का हुनर
उन रास्तों पर मुझ को
गुमान आज भी है,
पार कर शरारत की
हर सीमा को लांघा था
सुनो!उस बागीचे में
शैशव मेरा सुरक्षित है,
चिढ़ाया करते थे जो
बातों में मज़े ले कर
उन दोस्तों की यादों में
ज़िक्र मेरा हरदम है
तन्हाई में गाँव मेरे!
तुम ही तो साथी हो
काश! तुम पे वार सकूँ
जिंदगी जो बाक़ी हो।।
~बोधमिता
रात...
जिसमें सारी आधी बात
नयी पुरानी कुछ सौगात
दुल्हन लाने चली बारात
मनचलों की आवारगी सी
नवयुगलों की शर्मीली बात
आधे चाँद की पूरी रात
नयनों नयनों चलती बात
सपनों के सच होने तक
पलकें नहीं झपकाती रात
जाने फिर क्या होती बात
मलिन साँझ के साए सी
हो जाती कजरारी रात
नववधू प्रौढ़ा हो जाती
युवक अनन्त में खो जाता
गृहस्थी के बोझ तले
अस्तित्व दबा ही रह जाता
जीवन गुत्थी उलझी जाती
इन उलझे धागे सुलझाने
जागो सहृदयी रातों में
बैठो कुछ मिठास भरो
अपनी रीति बातों में ||
~बोधमिता